बीरभूम हिंसा : अवैध खनन से जुड़ी हिंसा और भ्रष्टाचार की है कहानी

रामपुरहाट. रेत से भरे ट्रक आगे बढ़ने के लिए कड़ी मशक्कत करते नजर आ रहे थे. दरअसल, वाहनों को ब्राह्मणी नदी से निकाली गई इस रेत को लेकर नदी तट से ऊपर जाने में बहुत मुश्किल होती है. ट्रक चालकों को रेत के लिए कथित तौर पर स्थानीय नेताओं और प्रशासन को ‘हफ्ता’(घूस) देना होता है, जो ट्रक पर लदी रेत के आधार पर तय होती है और बंगाल तथा पड़ोसी राज्यों के निर्माण स्थल के लिए रवाना होने से पहले यह रकम देनी पड़ती है.

बीरभूम अवैध रेत खनन की यह दुनिया दुश्मनी, हत्या, बंदूक रखने और गैर कानूनी तरीके से बम बनाने और भ्रष्टाचार का केंद्र है.
इस स्याह दुनिया का नवीनतम शिकार स्थानीय तृणमूल कांग्रेस का मजबूत नेता भादू शेख बना, जिसकी कथित हत्या नदी से अवैध तरीके से रेत निकालने से होने वाली कमाई में हिस्सेदारी नहीं देने की वजह से हुई. शेख की हत्या के प्रतिशोध में बीरभूम जिले के बोगतुई गांव में बच्चों और महिलाओं सहित आठ लोगों की ंिजदा जला दिया गया.

रामपुरहाट कस्बे से करीब 15 किलोमीटर दूर ब्रह्मणी नदी पर बने बैधारा पुल के नजदीक रहने वाले एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया, ‘‘लंबे समय से ताकतवार लोगों की सरपस्ती में अवैध रेत खनन का कारोबार फलफूल रहा है. स्थानीय माफिया और सत्ता के लिए यह मिलीभगत वाला कार्य है.’’ जिले से बहने वाली मयूराक्षी, अजय और ब्रह्मणी नदी के किनारे करीब 80 रेत खनन स्थल हैं, जहां से स्थानीय माफिया प्रभावशाली लोगों के सहयोग से यह कार्य (रेत खनन का) करता है.

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रंिवद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती के लिए र्चिचत बीरभूम में रेत खनन के अलावा पत्थर का भी अवैध उत्खनन होता है. रामपुरहाट से करीब 48 किलोमीटर दूर केंदुली निवासी और सरकारी शिक्षक के पद से सेवानिवृत्त बनेश्वर घोष के मुताबिक अवैध रेत खनन छोटे पैमाने के ‘कारोबार’से बदलकर कई सालों में वृहद, अधिक संगठित हो गया है और राज्य में रियल एस्टेट में आई तेजी ने रेत की मांग बढ़ा दी है.

घोष ने बताया, ‘‘वर्ष 1970 के कांग्रेस के शासन के दौरान तस्करी छोटे पैमाने पर शुरू हुई थी और वाम मोर्चे के शासनकाल में फलाफूला और अब तृणमूल कांग्रेस के शासन में भी जारी है. दियारा से रेत खत्म हो गई है और अब वे नदी के किनारों (बालीघाट) से खनन कर रहे हैं.’’ ब्रह्मणी नदी की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 14 पर रेत या पत्थर से लदे ट्रक कतार में खड़े रहते हैं और चालकों को रास्ते में लोगों के समूह को रुपये देते हुए देखा जा सकता है.

अनाधिकारिक ‘जांच चौकी’ पर तैनात अंगुर आलम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह कुछ नहीं बल्कि ट्रांसपोर्टर द्वारा भुगतान किया जाने वाला ‘शुल्क है. हम उन्हें इसकी रसीद देते हैं. शुल्क ट्रक के आकार के हिसाब से अलग-अलग है.’’ उन्होंने बताया कि रोजाना रेत और पत्थर से ‘क्षमता से अधिक लदे’ 700 ट्रकों को इस इलाके से जाने का ‘परमिट’ दिया जाता है. आलम ने बताया कि प्रत्येक ट्रक को 2,200 रुपये का भुगतान करना होता है.

आलम ने बताया कि इन इलाकों से रेत की ‘ तस्करी’ उत्तर 24 परगना, दुर्गापुर और पश्चिम बर्द्धमान जिले के आसनसोल, मुर्शिदाबाद के बेहरामपुर और यहां तक कई बार पड़ोसी राज्य झारखंड तक किया जाता है. पश्चिम बंगाल खनिज खनन नियमावली-2002 के तहत नदी के ‘पांच किलोमीटर के दायरे में खनन कार्य नहीं किया जा सकता.

भाजपा नेता सुभाशिष चौधरी ने दावा किया, ‘‘ऐसे नियमों को भूल जाएं, वे वैध खनिकों के लिए हैं….यहां अपराधी राजनीतिक रसूख रखने वालों की शह पर कार्य करते हैं.’’ उन्होंने आरोप लगाया कि अनासुर हुसैन और न्यूटन शेख सहित भादू शेख की बदले की हत्या के मामले में गिरफ्तार अधिकतर आरोपी अवैध रेत खनन से जुड़े हुए हैं.

जब पश्चिम बंगाल खनिज विकास एवं व्यापार निगम लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि खनिकों को चिह्नित स्थानों पर रेत खनन के लिए ‘‘पहले आओ-पहले पाओ’’ नीति के तहत वैध परमिट दिए गए हैं.
स्थानीय विधायक आशीष बंदोपाध्याय ने रेत तस्करी के आरोपों को बकवास करार देते हुए आरोप लगाया कि वाम मोर्चे की सरकार इलाके में ऐसे अवैध कार्यो में शामिल थी. उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद प्रशासन ने ऐसे कार्यों पर रोक लगाई और अवैध रेत और पत्थर खनन को खत्म करने के साथ उसकी तस्करी भी रोकी.

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