एमवीए ‘अप्राकृतिक गठबंधन’ है, शिवसेना को उससे बाहर निकल आना चाहिए : बागी नेता शिंदे
मुंबई. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने बुधवार को कहा कि महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास आघाड़ी (एमवीए) एक ‘अप्राकृतिक गठबंधन’ है और उनकी पार्टी के लिए आवश्यक है कि वह अपने और पार्टी कार्यकर्ताओं के हित में राकांपा और कांग्रेस के साथ इस गठबंधन से बाहर निकल आए. गौरतलब है कि शिंदे के इस बयान से कुछ ही घंटों पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पार्टी के बागी नेताओं तक पहुंचने का प्रयास करते हुए कहा था कि अगर शिवसेना का एक भी विधायक उनके सामने आकर उन्हें अक्षम कह दे तो वह पद से इस्तीफा दे देंगे.
शिवसेना के वरिष्ठ नेता व कैबिनेट मंत्री शिंदे ने कहा कि नवंबर, 2019 में गठित एमवीए से सिर्फ गठबंधन सहयोगियों कांग्रेस और राकांपा को लाभ हुआ है जबकि सामान्य शिवसैनिकों को गठबंधन के पिछले ढाई साल में सबसे ज्यादा तकलीफ हुई है. शिवसेना के बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी में मौजूद शिंदे ने ट्वीट किया, ‘‘शिवसेना और शिवसैनिकों के हित में यह आवश्यक है कि इस अप्राकृतिक गठबंधन से बाहर निकला जाए. राज्य के हित में फैसला लेना आवश्यक है.’’ उन्होंने ‘हिन्दुत्व फॉरऐवर’ के हैशटैग के साथ मराठी में ट्वीट किया है.
शिंदे ने दोहराया कि एमवीए गठबंधन में राकांपा और कांग्रेस मजबूत हो रहे हैं, लेकिन मुख्य पार्टी शिवसेना और उसके कार्यकर्ता लगातार कमजोर होते जा रहे हैं. शिवसेना ने 2019 विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा से गठबंधन समाप्त करके एमवीए का गठन किया था.
एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 34 विधायकों के समर्थन का किया दावा
गुवाहाटी में डेरा डाले हुए शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उन्हें अपनी पार्टी के 34 विधायकों का समर्थन प्राप्त है और उन्होंने बुधवार शाम को एक प्रस्ताव पारित कर खुद को शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में बहाल कर दिया. इससे एक दिन पहले शिवसेना नेतृत्व ने उन्हें विधायक दल के नेता पद से हटा दिया था. शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोही खेमे द्वारा पारित प्रस्ताव में शिवसेना विधायक भरत गोगावाले को पार्टी का नया मुख्य सचेतक नामित किया गया है और मौजूदा सुनील प्रभु को पद से हटा दिया गया है.
दोपहर के समय शिंदे द्वारा जारी किए गए पत्र पर शिवसेना के 34 विधायकों के हस्ताक्षर हैं. इससे पहले दिन में, प्रभु ने एक पत्र जारी कर शिंदे के साथ आए बागियों समेत शिवसेना के सभी विधायकों को शाम पांच बजे मुंबई में विधायक दल की बैठक में शामिल होने या दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई का सामना करने को कहा था. शिंदे खेमे द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि 2019 के महाराष्ट्र चुनाव के बाद भाजपा से नाता तोड़ने के शिवसेना नेतृत्व के फैसले का पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं पर “नकारात्मक” प्रभाव पड़ा.
महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के 55 विधायक हैं.
दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार, विलय के लिए किसी विधायक दल के दो-तिहाई सदस्यों की सहमति की आवश्यकता होती है, जिन्होंने किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ विलय करने की सहमति दी हो. अयोग्यता से बचने के लिए शिंदे को 37 विधायकों (55 विधायकों में से दो तिहाई) का समर्थन सुनिश्चित करना होगा.
पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि “वैचारिक रूप से विपरीत” राकांपा और कांग्रेस के साथ एमवीए सरकार बनाते समय शिवसेना की ंिहदुत्व की मूल विचारधारा और “मराठी मानुष” के अधिकारों की रक्षा के साथ समझौता किया गया था. शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ने महा विकास अघाडी को “भ्रष्ट सरकार” करार दिया. पत्र में कहा गया कि राकांपा और कांग्रेस (नवंबर 2019 में) के साथ सरकार बनाने से शिवसैनिकों में “भारी असंतोष” था क्योंकि दोनों दल वैचारिक रूप से शिवसेना के विरोधी हैं.
विद्रोह का झंडा फहराने के अपने कदम के पीछे के कारणों की ओर इशारा करते हुए, विधायकों ने कहा कि उन्हें और शिवसेना कार्यकर्ताओं को वैचारिक विरोधियों का समर्थन करने के लिए मतदाताओं से “अपमानजनक प्रश्नों” का सामना करना पड़ रहा था.
पत्र में कहा गया, “इस भ्रष्ट महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा होने के कारण हमारी काफी आलोचना भी हुई है.” पत्र में कहा गया कि शिवसेना व्यापक वैचारिक आधार वाली पार्टी है जिसका गठन स्थानीय मराठी लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के उद्देश्य से किया गया था.
इसमें कहा गया, “हमारी पार्टी के नेता दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा महाराष्ट्र के लोगों को एक स्वच्छ और ईमानदार सरकार देने की थी और ंिहदुत्व के सिद्धांत से समझौता किए बिना, जिसे पहले दिन ही विरोधी विचारधाराओं के साथ जुड़कर पराजित कर दिया गया.” शिवसेना के 34 विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में उद्धव ठाकरे के नाम की जगह “पार्टी नेतृत्व” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. पत्र में कहा गया, “2019 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा से संबंध तोड़ने के हमारे पार्टी नेताओं के कृत्य का मतदाताओं और पार्टी कैडर पर बड़े पैमाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. विपक्षी दलों (राकांपा और कांग्रेस) के साथ गठबंधन करने को लेकर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ लगातार आवाज उठ रही थी लेकिन इसने फिर भी आगे बढ़कर एमवीए सरकार का गठन किया.”