राष्ट्रपति चुनाव : यशवंत सिन्हा होंगे विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार

नयी दिल्ली. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित कई प्रमुख विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार चुना. राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को चुनाव होने हैं और परिणाम 21 जुलाई को आएगा. राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार पर फैसला करने के लिए राकांपा प्रमुख शरद पवार द्वारा बुलाई गई बैठक के लिए विपक्षी दलों के नेता संसद भवन परिसर में स्थित संसदीय सौध में एकत्र हुए और बैठक में सिन्हा के नाम पर सर्वसम्मति बनी.

वरिष्ठ नेता सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी है और वह 27 जून को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे. सिन्हा पहले भारतीय जनता पार्टी में थे. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बैठक के बाद एक संयुक्त बयान पढ़ते हुए कहा, ‘‘हमें खेद है कि मोदी सरकार ने राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया.’’ उन्होंने कहा कि देश के सर्वोच्च पद के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनाए की पहल सरकार द्वारा की जानी चाहिए थी.

रमेश ने कहा, ‘‘हमें यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि हमने सर्वसम्मति से यशवंत सिन्हा को 18 जुलाई, 2022 को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी दलों के उम्मीदवार के रूप में चुना है.’’ बयान में कहा गया ‘‘लंबे सार्वजनिक जीवन और प्रतिष्ठित करियर में यशवंत सिन्हा ने विभिन्न क्षमताओं- एक सक्षम प्रशासक, कुशल सांसद और प्रशंसित केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री के रूप में देश की सेवा की है. वह भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए विशिष्ट रूप से योग्य हैं.’’ नेताओं ने यह घोषणा भी की कि सिन्हा के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के संचालन के लिए गठित समिति आज से काम करना शुरू कर देगी. विभिन्न मुद्दों पर काफी मुखर रहे सिन्हा की उम्र 80 वर्ष से अधिक है.

पवार ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने विभिन्न दलों के नेताओं से खुद बातचीत की. इनमें आम आदमी पार्टी (आप) नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरंिवद केजरीवाल और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव शामिल थे जो बैठक में शामिल नहीं हुए.
पवार ने कहा कि उन्होंने तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी), तेजस्वी यादव (राष्ट्रीय जनता दल), फारूक अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस) और संजय राउत (शिवसेना) से भी बातचीत की और उन सभी ने सिन्हा को उम्मीदवार बनाए जाने का समर्थन किया.

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हम बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस को भी मनाने की कोशिश करेंगे.’’ इस बैठक में कांग्रेस, राकांपा, तृणमूल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रतिनिधि शामिल हुए.

पांच क्षेत्रीय दल – तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), बीजू जनता दल (बीजद), आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और वाईएसआरसीपी इस बैठक से दूर रहे. इन पार्टियों को किसी भी धड़े में नहीं माना जाता. ये पार्टियां ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई 15 जून की बैठक से भी दूर रही थीं. रमेश ने संयुक्त बयान पढ़ते हुए कहा कि सभी राजनीतिक दलों से राष्ट्रपति के रूप में यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की अपील की गई है ताकि हम एक योग्य ‘राष्ट्रपति’ को निर्विरोध निर्वाचित कर सकें.

कांग्रेस के ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ ंिसह ने उन्हें और कुछ अन्य नेताओं को यह पूछने के लिए फोन किया था कि क्या शीर्ष संवैधानिक पद के लिए उनके पास कोई नाम है. खड़गे ने कहा, ‘‘यह सिर्फ संपर्क करने के लिए था, इसे गंभीर प्रयास नहीं कहा जा सकता है.’’ संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत मुश्किल समय से गुजर रहा है और केंद्र की भाजपा सरकार अपने वादों को पूरा करने में पूरी तरह से नाकाम रही है.

बयान में कहा गया है, ‘‘‘‘यह ईडी, सीबीआई, निर्वाचन आयोग, राज्यपाल के कार्यालय और अन्य संस्थानों को विपक्षी दलों और उनकी राज्य सरकारों के खिलाफ हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रहा है. इसलिए, हम भारत के लोगों को आश्वस्त करते हैं कि विपक्षी दलों की एकता, जो समानता, साझा प्रतिबद्धताओं और संवाद के जरिए आम सहमति बनाने की भावना से राष्ट्रपति चुनाव के लिए बनी है, आने वाले महीनों में इसे और मजबूत किया जाएगा.’’ सिन्हा का नाम पवार, गोपालकृष्ण गांधी और फारूक अब्दुल्ला द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की पेशकश को अस्वीकार किए जाने के बाद सामने आया.

वाम दल के सूत्रों के अनुसार, सिन्हा तृणमूल के उपाध्यक्ष थे और उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि कांग्रेस तथा वाम दल चाहते थे कि वह स्वतंत्र उम्मीदवार हों और किसी पार्टी से जुड़े नहीं हों. बैठक में भाग लेने वाले नेताओं में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, जयराम रमेश और रणदीप सुरजेवाला, तृणमूल के अभिषेक बनर्जी, द्रमुक के तिरुचि शिवा, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी. राजा, राजद के मनोज झा, नेकां के हसनैन मसूदी, आरएसपी के एन. के. प्रेमचंद्रन और एआईएमआईएम के इम्तियाज शामिल हैं.

कभी थे आडवाणी के विश्वस्त, अब बने विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार

यशवंत सिन्हा अपने करीब चार दशक लंबे राजनीतिक जीवन में समाजवादी नेता चंद्रशेखर से लेकर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी तक के करीबी सहयोगी रहे. भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सिन्हा पार्टी एवं सरकार में कई प्रमुख पदों पर रहे लेकिन भाजपा में नए नेतृत्व के उभरने के साथ ही पिछले दशक में उनके सितारे धुंधले पड़ने लगे.

सिन्हा ने कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार की तीखी आलोचना की और भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने का खासा प्रयास किया. इससे 80 साल से अधिक उम्र के हो चुके सिन्हा को विपक्षी खेमे में स्थान मिला और उसने राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाया है. उन्हें उम्मीदवार ऐसे दौर में बनाय गया है जब माना जा रहा था कि सिन्हा का राजनीतिक सफर समाप्त होने की ओर अग्रसर है.

सिन्हा ने अल्पकालिक चंद्रशेखर सरकार में और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया. हालांकि हमेशा उनका तेवर विद्रोही का रहा. उन्होंने 1989 में वी. पी. ंिसह सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया और फिर 2013 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर मुखर रहे.

उसके बाद गडकरी को पद छोड़ना पड़ा और कई लोगों का मानना था कि सिन्हा के कदम को आडवाणी का आशीर्वाद प्राप्त था. हालांकि सिन्हा के इस कदम ने उन्हें पार्टी में हाशिये पर धकेल दिया और पार्टी सदस्यों ने हमेशा ऐसे नेता के आगे बढ़ने पर नाराजगी जताई, जो वास्तव में भाजपा की पृष्ठभूमि से नहीं थे.

भाजपा ने 2014 में उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देकर उनके बेटे जयंत सिन्हा को मैदान में उतारा. लेकिन वह इससे शांत नहीं हुए और उन्होंने 2018 में भाजपा छोड़ दी और आरोप लगाया कि लोकतंत्र खतरे में है. वह 2021 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.
बिहार में पैदा हुए और बिहार-कैडर के आईएएस अधिकारी ने 1984 में प्रशासनिक सेवा छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए. जनता पार्टी के नेता चंद्रशेखर उन्हें पसंद करते थे और उन्हें सक्षम और स्पष्टवादी मानते थे. सिन्हा ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री और समाजवादी दिग्गज कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव के रूप में भी काम किया था.

सिन्हा 1988 में राज्यसभा के सदस्य बने. चंद्रशेखर सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं ने 1989 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए जनता दल के गठन के लिए हाथ मिलाया. बाद में सिन्हा ने अपने राजनीतिक गुरु का अनुसरण किया जब उन्होंने वी. पी. ंिसह सरकार को गिराने के लिए जनता दल को विभाजित कर दिया.

चंद्रशेखर के राजनीतिक प्रभाव में कमी आने और भाजपा के उभरने के बीच सिन्हा आडवाणी के प्रभाव में पार्टी में शामिल हो गए. दोनों नेताओं के बीच करीबी रिश्ता था. उन्हें बिहार में नेता प्रतिपक्ष सहित कई अहम जिम्मेदारियां दी गईं. वह 1998 में हजारीबाग से लोकसभा चुनाव जीता और सरकार में 2002 तक वित्त मंत्री रहे और बाद में विदेश मंत्री बने.

वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने शाम पांच बजे केंद्रीय बजट पेश करने की औपनिवेशिक प्रथा को रद्द कर दिया. उन्हें वाजपेयी सरकार के दौरान सुधारों को आगे बढ़ाने का श्रेय है. भाजपा नीत राजग को संख्यात्मक बढ़त होने के कारण, राष्ट्रपति चुनाव में सिन्हा की संभावनाएं क्षीण हैं और काफी हद तक यह मुकाबला प्रतीकात्मक प्रतीत होता है.

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