रिजर्व बैंक ने रेपो दर 0.5% बढ़ाई, महंगाई पर काबू के लिए नरम रुख छोड़ने की तैयारी

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को खुदरा महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया. इससे मौजूदा कर्ज की मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ने के साथ आवास, वाहन और अन्य कर्ज लेना महंगा होगा.

चालू वित्त वर्ष की चौथी मौद्रिक नीति समीक्षा में लगातार तीसरी बार नीतिगत दर बढ़ाई गई है. कुल मिलाकर 2022-23 में अबतक रेपो दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है. इसके साथ ही प्रमुख नीतिगत दर महामारी-पूर्व के स्तर से ऊपर पहुंच गयी है. फरवरी, 2020 में रेपो दर 5.15 प्रतिशत थी. साथ ही मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नरम नीतिगत रुख को वापस लेने पर ध्यान देने का भी निर्णय किया है.

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन अगस्त से शुरू तीन दिन की बैठक में किये गये निर्णय की जानकारी देते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने टेलीविजन पर प्रसारित बयान में कहा, ‘‘एमपीसी ने आम सहमति से रेपो दर 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत करने का फैसला किया.’’ उन्होंने संकेत दिया कि रेपो दर में लगातार दूसरी बार 0.5 प्रतिशत की वृद्धि नीतिगत दर को कड़ा किये जाने को लेकर कोई अंतिम कदम नहीं है. महंगाई को नियंत्रण में लाने के लिये और कदम उठाये जा सकते हैं.

मुद्रास्फीति लगातार छह महीने से रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. इस साल जून में खुदरा मुद्रास्फीति 7.01 प्रतिशत रही. केंद्रीय बैंक ने हालांकि वैश्विक स्तर पर नरमी के संकेत के बावजूद आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

दास ने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति दबाव चौतरफा है और मुख्य मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है. मुद्रास्फीति 2022-23 की पहली तीन तिमाहियों में छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी रहने का अनुमान है….’’ आरबीआई ने कहा कि वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव से आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम है.

दास ने कहा, ‘‘ मौद्रिक नीति समिति ने आने वाले समय में मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप काबू में लाने के साथ आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के इरादे से नरम नीतिगत रुख को वापस लेने पर ध्यान देने का भी फैसला किया है.’’ उन्होंने कहा कि ये निर्णय आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के साथ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति को दो से छह प्रतिशत के दायरे में रखने के लक्ष्य के अनुरूप है.

अर्थव्यवस्था के बारे में दास ने कहा, ‘‘घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है. चार अगस्त, 2022 तक दक्षिण-पश्चिम मानसूनी बारिश दीर्घावधि औसत से छह प्रतिशत अधिक है. खरीफ बुवाई गति पकड़ रही है.’’ दास ने यह भी कहा कि निर्यात, वाहनों की बिक्री, ई-वे बिल जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े तेजी का संकेत देते हैं. शहरी मांग मजबूत हो रही है, ग्रामीण मांग भी गति पकड़ रही है. इसके आधार पर आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर बरकरार रखा है.

मुद्रास्फीति के बारे में कहा गया है, ‘‘वैश्विक स्तर पर जारी संकट और उसके कारण उत्पन्न अनिश्चितता से मुद्रास्फीति पर असर पड़ रहा है. हालांकि, हाल में खाद्य और धातु के दाम उच्चस्तर से नीचे आये हैं और वैश्विक स्तर पर कच्चा तेल भी कुछ नरम हुआ है लेकिन यह अब भी ऊंचा बना हुआ है. इसके अलावा अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से मुद्रास्फीति पर दबाव पड़ सकता है.’’ आरबीआई ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति के अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. रिजर्व बैंक के अनुसार, मुद्रास्फीति में घट-बढ़ को लेकर जोखिम दोनों तरफ बराबर बना हुआ है.

एक्यूट रेंिटग्स एंड रिसर्च के मुख्य विश्लेषण अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में कर्ज की मांग में सुधार को देखते हुए जमा और कर्ज पर ब्याज दर बढ़ने की संभावना है. इंडिया रेंिटग्स एंड रिसर्च ने कहा कि आरबीआई के ‘तटस्थ नीतिगत दर’ तक पहुंचने तक रेपो दर में वृद्धि का सिलसिला जारी रख सकता है.

उसने कहा कि यह अल्पकालीन नीतिगत दर है जिससे उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था दीर्घकाल में स्थिर होगी. अगर आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को बरकरार रखा है, तब इसका मतलब है कि चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में रेपो दर में 0.25 से 0.30 प्रतिशत की और वृद्धि हो सकती है. उल्लेखनीय है कि इससे पहले आरबीआई ने रेपो दर में इस साल मई में अचानक से 0.40 प्रतिशत और जून में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि की थी.

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट के बारे में दास ने कहा कि घरेलू मुद्रा में चार अगस्त तक 4.7 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. इसके बावजूद यह कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है. उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय रुपये में गिरावट का कारण अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना है न कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वृहत आर्थिक बुनियाद के कमजोर होने का यह नतीजा है.
दास ने कहा कि आरबीआई रुपये के मामले में सतर्क रहेगा और स्थिरता सुनिश्चित करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि वित्तीय क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी है और ठोस विदेशी मुद्रा भंडार वैश्विक संकट के कारण उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में सक्षम है.

विकासात्मक और नियामकीय नीतियों के तहत आरबीआई ने अन्य बातों के अलावा ‘क्रेडिट’ के बारे में सूचना देने वाली कंपनियों (सीआईसी) को रिजर्व बैंक की ओम्बुड्समैन योजना के दायरे में लाने का निर्णय किया है. रिजर्व बैंक एकीकृत ओम्बुड्समैन योजना (आरबी-आईओएस), 2021 के तहत फिलहाल शहरी सहकारी बैंकों समेत अनुसूचित वाणिज्यिक, गैर-बैंंिकग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और गैर-अनुसूचित प्राथमिक सहकारी बैंक आते हैं.

रिजर्व बैंक ने कहा, ‘‘आरबी-आईओएस को और अधिक व्यापक बनाने के लिये क्रेडिट सूचना कंपनियों (सीआईसी) को इसके दायरे में लाने का निर्णय लिया गया है. यह इन कंपनियों के ग्राहकों को शिकायतों के समाधान के लिये लागत मुक्त वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान करेगा.’’ साथ ही आंतरिक स्तर पर शिकायतों के समाधान की व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये सीआईसी को आंतरिक ओम्बुड्समैन के दायरे में भी लाने का निर्णय किया गया है.

रिजर्व बैंक ने भारत में अपने परिवारों की ओर से बिजली, शिक्षा समेत अन्य बिलों के भुगतान के लिये अनिवासी भारतीयों को भारत बिल भुगतान प्रणाली (बीबीपीएस) का उपयोग करने की अनुमति देने के लिये व्यवस्था बनाने का निर्णय किया है. अभी यह सुविधा केवल भारत में रहने वाले लोगों के लिये है. एमपीसी की अगली बैठक 28-30 सितंबर को होगी.

बैंक ऋण वृद्धि के लिए हमेशा आरबीआई के धन पर निर्भर नहीं रह सकते: दास

बैंक अपना ऋण कारोबार बढ़ाने के लिए सिर्फ केंद्रीय बैंक के धन पर स्थायी रूप से निर्भर नहीं रह सकते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को यह बात कही. दास ने कहा कि बैंकों को ऋण वृद्धि के लिए अधिक जमा जुटाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि बैंकों ने रेपो दरों में बढ़ोतरी का प्रभाव अपनी जमा दरों पर डालना शुरू कर दिया है और यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है.

दास ने नीतिगत घोषणा के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब कोई ऋण की मांग होती है, तो बैंक उस ऋण वृद्धि को तभी बनाए रख सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं, जब उनके पास अधिक जमा राशि हो. वे ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए केंद्रीय बैंक के धन पर हर वक्त निर्भर नहीं रह सकते हैं… उन्हें अपने खुद के संसाधन और कोष जुटाना होगा.’’ छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने शुक्रवार को रेपो दर को 0.50 प्रतिशत बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत कर दिया.

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने उम्मीद जताई की जमाओं की रफ्तार बहुत जल्द ऋण के साथ तालमेल बैठा लेगी.
आंकड़ों के मुताबिक, 15 जुलाई को समाप्त पखवाड़े में बैंक ऋण 12.89 प्रतिशत और जमाएं 8.35 प्रतिशत बढ़ीं. दास ने उम्मीद जताई की दरों में बढ़ोतरी का असर बैंकों द्वारा जमा दरों में बढ़ोतरी के रूप में दिखाई देगा. उन्होंने कहा, ‘‘पहले ही रुझान शुरू हो गए हैं. हाल के हफ्तों में कई बैंकों ने अपनी जमा दरों में वृद्धि की है और यह प्रवृत्ति जारी रहेगी.’’

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