रिजर्व बैंक ने रेपो दर 0.4 प्रतिशत बढ़ाई, बढ़ेगी कर्ज की मासिक किस्त

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को अचानक प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा की. मुख्य रूप से बढ़ती मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये केंद्रीय बैंक ने यह कदम उठाया है. केंद्रीय बैंक के इस कदम से आवास, वाहन और अन्य कर्ज से जुड़ी मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ेगी.

इस वृद्धि के साथ रेपो दर रिकॉर्ड निचले स्तर चार प्रतिशत से बढ़कर 4.40 प्रतिशत हो गई है. अगस्त, 2018 के बाद यह पहला मौका है जब नीतिगत दर बढ़ाई गई है. साथ ही यह पहला मामला है जब आरबीआई के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने प्रमुख ब्याज दर बढ़ाने को लेकर बिना तय कार्यक्रम के बैठक की.

मौद्रिक नीति समिति की बैठक में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 0.50 प्रतिशत बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत करने का भी निर्णय किया गया. इससे बैंकों को अतिरिक्त राशि केंद्रीय बैंक के पास रखनी पड़ेगी जिससे उनके पास ग्राहकों को कर्ज देने के लिये कम पैसा उपलब्ध होगा. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने नीतिगत दर में वृद्धि के बारे में ‘आॅनलाइन’ जानकारी देते हुए कहा कि सीआरआर बढ़ने से बैंकों में 87,000 करोड़ रुपये की नकदी घटेगी.

हालांकि, उन्होंने रिवर्स रेपो दर का जिक्र नहीं किया. इससे यह 3.35 प्रतिशत पर बरकरार है. स्थायी जमा सुविधा दर अब 4.15 प्रतिशत जबकि सीमांत स्थायी सुविधा दर और बैंक दर 4.65 प्रतिशत होगी. हालांकि, एमपीसी ने उदार रुख को भी बरकरार रखा है. दास ने कहा कि मुद्रास्फीति खासकर खाद्य वस्तुओं की महंगाई को लेकर दबाव बना हुआ है. ऊंची कीमतें लंबे समय तक बने रहने का जोखिम है.

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था की सतत और समावेशी वृद्धि के लिये मुद्रास्फीति को काबू में करना जरूरी है.’’ रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन और खाद्य वस्तुओं के दाम में तेजी तथा महामारी से जुड़ी आपूर्ति संबंधी बाधाओं के कारण मुद्रास्फीति लगातार तीसरे महीने आरबीआई के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. सकल मुद्रास्फीति मार्च में बढ़कर 17 महीने के उच्चस्तर 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गई और अप्रैल में भी इसके लक्ष्य से ऊपर बने रहने की आशंका है.

आरबीआई को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ महंगाई दर को चार प्रतिशत के दायरे में रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. एमपीसी की अगली बैठक आठ जून को प्रस्तावित है और विश्लेषक रेपो दर में 0.25 प्रतिशत और वृद्धि की संभावना जता रहे हैं. दास ने कहा, ‘‘एमपीसी ने यह फैसला किया कि मुद्रास्फीति परिदृश्य को देखते हुए उपयुक्त और समय पर तथा सूझ-बूझ के साथ कदम जरूरी है. ताकि दूसरे चरण में अर्थव्यवस्था पर आपूर्ति संबंधी झटकों के असर को काबू में रखा जाए और मुद्रास्फीति को लेकर दीर्घकालीन लक्ष्य को हासिल किया जाए.’’ हालांकि, उन्होंने कहा कि मौद्रिक रुख उदार बना हुआ है और कदम सोच-विचार कर उठाये जाएंगे.

आरबीआई के अचानक से उठाये गये कदम ने बाजार को अचंभित किया और बीएसई सेंसेक्स 1,307 अंक लुढ़क गया. वहीं 10 साल के बांड पर प्रतिफल 7.38 प्रतिशत पर पहुंच गया. डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रूमकी मजूमदार ने कहा कि नीतिगत दर में वृद्धि की जून में संभावना थी.

उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई के नीतिगत दर बढ़ाने को लेकर एक महीने पहले ही अचानक से उठाया गया कदम बताता है कि वह देखो और इंतजार करो पर काम नहीं करना चाहता. बल्कि मुद्रास्फीति के आर्थिक पुनरुद्धार को पटरी से उतारने से पहले उसे काबू में लाने को तेजी से कदम उठाने को इच्छुक है.’’ मजूमदार ने कहा, ‘‘हालांकि इससे कर्ज महंगा होगा. जिससे कंपनियां खासकर एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) प्रभावित होंगे. साथ कर्ज वृद्धि पर भी असर होगा, जो 2019 से नीचे है. आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होंगी.’’ इससे पहले, केंद्रीय बैंक ने बिना तय कार्यक्रम के 22 मई, 2020 को रेपो दर में संशोधन किया था. इसके तहत मांग बढ़ाने के इरादे से रेपो दर को घटाकर अबतक के सबसे निचले स्तर चार प्रतिशत पर लाया गया था.

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक की मुख्य बातें

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति की बिना तय कार्यक्रम के आयोजित बैठक में लिए गए मुख्य फैसले:

* नीतिगत दर (रेपो) को तत्काल प्रभाव से 0.40 प्रतिशत बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत किया गया.
* अगस्त, 2018 से नीतिगत दर में पहली बढ़ोतरी, कॉरपोरेट और आम लोगों के लिए उधार की लागत बढ़ेगी.
* नकद आरक्षित अनुपात को 0.50 प्रतिशत बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत किया गया, 21 मई से प्रभावी.
* एमपीसी ने दो मई और चार मई को बिना तय कार्यक्रम के बैठक आयोजित कर मुद्रास्फीति की स्थिति का पुनर्मूल्यांकन किया.
* आरबीआई ने उदार नीति बनाए रखने का फैसला किया. साथ ही महंगाई को लक्ष्य के भीतर रखने के लिए उदार रुख को धीरे-धीरे वापस लेने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.
* वैश्विक ंिजस कीमतों के चलते भारत में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ रही है.
* प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कोविड-19 संक्रमण के मामले फिर से बढ़ने लॉकडाउन और आपूर्ति श्रृंखला संबंधी व्यवधान से लॉजिस्टिक लागत बढ़ सकती है.
* भारतीय अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक परिस्थितियों में गिरावट का सामना करने में सक्षम है.
* उर्वरक की कीमतों में उछाल और अन्य लागत का भारत में खाद्य कीमतों पर सीधा प्रभाव पड़ता है.
* वैश्विक स्तर पर गेहूं की कमी से घरेलू कीमतें प्रभावित हो रही हैं, भले ही घरेलू आपूर्ति पर्याप्त बनी रहे.
* एमपीसी की अगली बैठक 6-8 जून को होगी.

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