कहीं बासी-बोरे तो कहीं मड़िया पेज, छग की संस्कृति को दिलचस्प अंदाज में प्रमोट कर रहे हैं भूपेश बघेल

रायपुर. छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा क्षेत्रों में भेंट-मुलाकात के लिए निकले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी योजनाओं का फीड-बैक तो ले ही रहे हैं, साथ ही बड़ी खूबसूरती से प्रदेश की संस्कृति को प्रमोट भी कर रहे हैं. इस यात्रा के दौरान वे ऐसे हर उस मौके का इस्तेमाल कर लेते हैं, जिससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति, रीति-रिवाज और खान-पान का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार हो सके. भेंट-मुलाकात की उनकी हर दोपहर तब और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाती है, जब सब की नजरें बघेल की थाली में सजे ठेठ छत्तीसगढ़िया पकवानों पर केंद्रित हो जाती है. उनके लंच में कभी बासी होती है तो कभी मड़िया-पेज, वे कभी पेहटा-तिलौरी का स्वाद ले रहे होते हैं तो कभी लकड़ा-चटनी और कोलियारी भाजी का.

सरगुजा संभाग में भेंट-मुलाकात का पहला चरण पूरा हो जाने के बाद 18 मई से बस्तर संभाग में दूसरा चरण शुरु हो चुका है. उन्होंने पहले चरण की शुरुआत राज्य के बिलकुल उत्तरी छोर पर स्थित बलरामपुर जिले से की थी, अब दूसरे चरण का आगाज उन्होंने बिलकुल दक्षिणी छोर पर स्थित सुकमा जिले के कोंटा विधानसभा क्षेत्र से किया है. जब वे छिंदगढ़ पहुंचे तब दोपहर के भोजन का वक्त हो चुका था. छिंदगढ़ के एक ग्रामीण आयता मंडावी ने बस्तर की परंपरागत शैली में अपने घर की छपरी की छांव में उनके भोजन की व्यवस्था की थी. उन्होंने जमीन पर बैठकर दोने-पत्तल में कोलियारी भाजी, आम की चटनी और दाल-भात का स्वाद लिया. उनके इस लंच में सबसे खास था मड़िया-पेज, जो बस्तर की पहचान भी है. यह एक ऐसा पेय है जिसे पीने के बाद लू का भी मुकाबला किया जा सकता है.

भेंट-मुलाकात अभियान पर निकलने से पहले बघेल ने 01 मई को छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आहार बोरे-बासी को प्रमोट किया था. बघेल की इस यात्रा ने उनकी योजनाओं और नीतियों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के पकवानों को भी चर्चा में ला दिया है. राज्य के विकास की अपनी रणनीति में संस्कृति और स्वाभिमान को महत्वपूर्ण घटक मानने वाले भूपेश बघेल की पहल पर अब तीजा-पोरा, हरेली, कर्मा जयंती, छठ, विश्व आदिवासी दिवस और मां शाकंभरी जयंती जैसे लोकपर्वों पर अब सार्वजिनक अवकाश होता है. प्रदेश के हर जिले में कल्चरल रेस्टोरेंट ‘गढ़-कलेवा’ की स्थापना कर ठेठरी, खुरमी, धुसका, चीला जैसे स्थानीय व्यंजनों को प्रमोट किया जा रहा है.

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