उच्चतम न्यायालय ने राजीव गांधी हत्या मामले के दोषी ए जी पेरारिवलन की रिहाई का दिया आदेश

नयी दिल्ली. संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में 30 साल से ज्यादा जेल की सजा काट चुके ए जी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मामले के सभी सातों दोषियों की समयपूर्व रिहाई की अनुशंसा संबंधी तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल की सलाह राज्यपाल के लिये बाध्यकारी थी.

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत किसी मामले में माफी देने का अधिकार ­विशिष्ट रूप से राष्ट्रपति के पास है. पीठ ने कहा कि यह अनुच्छेद 161 (क्षमादान देने की राज्यपाल की शक्ति) को निष्प्रभावी कर देगा. पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि हत्या के मामलों में दोषियों द्वारा अनुच्छेद 161 के तहत दी गई क्षमादान की याचिका के मामले में राज्यों के पास राज्यपाल को सलाह देने और सहायता करने की शक्ति है.

संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय के अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने और उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय करने के लिए आदेश पारित करने की शक्ति से संबंधित है. इस अनुच्छेद का इस्तेमाल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में भी किया गया था. केंद्र ने इससे पहले पेरारिवलन की दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजने के राज्यपाल के फैसले का बचाव किया था.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा था कि केवल राष्ट्रपति ही केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की माफी, सजा में बदलाव और दया संबंधी याचिकाओं पर फैसला कर सकते हैं. न्यायालय ने नौ मार्च को पेरारिवलन को उसके लंबे समय तक कैद रहने और पैरोल पर बाहर रहने के दौरान कोई शिकायत नहीं मिलने को ध्यान में रखते हुए जमानत दे दी थी. शीर्ष अदालत 47 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने ‘मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटंिरग एजेंसी’ (एमडीएमए) की जांच पूरी होने तक उम्रकैद की सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था.

सीबीआई ने 20 नवंबर, 2020 के अपने हलफनामे में शीर्ष अदालत को बताया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल को पेरारिवलन को रियायत देने पर फैसला लेना है. बाद में राज्यपाल ने दया याचिका यह कहते हुए राष्ट्रपति के पास भेज दी थी कि उनके पास इस पर फैसला करने की शक्ति नहीं है. दया याचिका तब से लंबित है और शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक (सजा में) छूट देने की शक्ति से जुड़े कानूनी मुद्दे पर फैसला नहीं हो जाता, वह दोषी को जमानत देगी.

सीबीआई ने कहा था कि पेरारिवलन सीबीआई के नेतृत्व वाले एमडीएमए द्वारा की गई आगे की जांच का विषय नहीं है. एमडीएमए जैन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बड़ी साजिश के पहलू की जांच कर रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की जांच के लिये गठित जैन आयोग ने एमडीएमए द्वारा बड़ी साजिश की जांच की सिफारिश की थी, और इसके लिए फरार संदिग्धों की निगरानी/पीछा करने और मामले में श्रीलंकाई व भारतीय नागरिकों की भूमिका पर नजर रखने की आवश्यकता है.

राज्य सरकार ने इससे पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि कैबिनेट ने पहले ही नौ सितंबर, 2018 को एक प्रस्ताव पारित कर दिया था, जिसमें राज्यपाल से मामले के सभी सात दोषियों को समय से पहले रिहा करने की सिफारिश की गई थी. एमडीएमए का गठन 1998 में न्यायमूर्ति एम सी जैन जांच आयोग की सिफारिश पर किया गया था, जिसने राजीव गांधी की हत्या के पहलुओं की जांच की थी.

तमिलनाडु के श्रीपेरंम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट में उड़ा लिया था, जिसमें राजीव गांधी मारे गए थे. हमलावर महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी. इस मामले में धनु समेत 14 अन्य लोग भी मारे गए थे. गांधी की हत्या देश में संभवत: पहला ऐसा मामला था, जिसमें आत्मघाती हमलावर ने एक बड़े नेता की जान ली थी.

न्यायालय ने मई 1999 के अपने आदेश में चारों दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा बरकरार रखी थी.
तमिलनाडु के राज्यपाल ने अप्रैल 2000 में राज्य सरकार की सिफारिश और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी की अपील के आधार पर नलिनी की मौत की सजा को कम कर दिया था. शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी 2014 को पेरारिवलन, संथन और मुरुगन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा उनकी दया याचिकाओं के निपटारे में 11 साल की देरी के आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का निर्णय किया था.

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