शीर्ष अदालत ने विधान परिषद चुनाव में वोट डालने के लिए मलिक एवं देशमुख को नहीं दी जमानत

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में मत डालने के लिए जेल से अस्थायी रिहाई संबंधी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के दो विधायकों नवाब मलिक और अनिल देशमुख के अनुरोध को खारिज कर दिया. हालांकि न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अवकाशकालीन पीठ ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी किया और वह जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 62 (5) का व्याख्या पर गौर करने को लेकर सहमत हो गयी. यह धारा जेल में बंद व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित करती है.

पीठ ने कहा, ‘‘ जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 62(5) की व्याख्या के प्रश्न के मद्देनजर हमारी राय है कि इस मामले को विस्तार से सुना जाए. संबंधित पक्षों के लिए यह खुला है कि वे चार हफ्ते में अपनी दलीलें पूरी करें.’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ उच्चतम न्यायालय ने अंकुल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ और एस राधाकृष्णन बनाम भारत संघ में धारा 62(5) की वैधता को बरकरार रखा था, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अंतरिम राहत के संबंध में हम अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं हैं.’’ प्रारंभ में ही वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने रांकांपा विधायकों की ओर पेश होते हुए शीर्ष अदालत से कहा कि इन दोनों को विधान परिषद चुनाव में मतदान से रोकना उन सभी मतदाताओं पर असर डालना होगा जिन्होंने इन्हें विधायक निर्वाचित किया है.

उन्होंने अपने मुवक्किलों की ओर से कहा, ‘‘ लोगों ने मुझे विधानसभा भेजा है. मैं उनकी आवाज का प्रतिनिधित्व करता हूं तथा विधानसभा के निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनता हूं . यदि मुझे ही वोट डालने के अधिकार से वंचित कर दिया गया तो जिन्होंने मेरे पक्ष में वोट डाला था, उनका भी अधिकार छीन जाएगा. ’’ उन्होंने कहा , ‘‘ वोट डालना मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि निश्चय ही संवैधानिक अधिकार है और यह अधिकार तो संविधान से निकलता है.’’ प्रवर्तन निदेशालय का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 62 (5) के तहत पाबंदी विधायक पर भी लागू होती है.

इससे पहले दिन में अरोड़ा ने यह कहते हुए यह मामला उल्लेखित किया कि इस अर्जी पर सोमवार को ही सुनवाई की जरूरत है क्योंकि मतदान आज ही हो रहा है. पीठ ने तब कहा था कि ऐसे मामलों को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से पहले इन्हें भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष भेजा जाता है.

पीठ ने कहा, ‘‘ अवकाश के दौरान सूचीबद्ध किए जाने वाले मामलों के संबंध में एक परिपत्र जारी किया गया है और मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष भेजना होगा.’’ हालांकि पीठ ने वरिष्ठ वकील का अनुरोध मान लिया और कहा कि वह देखेगी कि क्या इस मामले को दोपहर में सुनवाई के लिए हाथ में लिया जा सकता है.

इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय ने 17 जून को महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक और पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा विधान परिषद चुनाव में मतदान की अनुमति के अनुरोध वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था और वोट डालने का संवैधानिक अधिकार पूर्ण नहीं है.

मलिक और देशमुख अलग-अलग मामलों में धन शोधन और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं. इन दोनों ने अदालत से अनुरोध किया था कि वोट डालने के लिए उन्हें ‘सुरक्षा निगेहाबानी’ में ‘कुछ घंटे के लिए हिरासत में ही’ बाहर जाने दिया जाए. पहले मलिक और देशमुख महाराष्ट्र से राज्यसभा के चुनाव के लिए 10 जून को वोट डालने के वास्ते अस्थायी जमानत होते अदालत गये थे लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली थी.

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