शहरी सहकारी बैंकों को संतुलित विकास पर ध्यान देने, आधुनिक बैंक प्रणाली अपनाने की जरूरत: शाह

नयी दिल्ली. केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को कहा कि शहरी सहकारी बैंकों को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिये संतुलित विकास पर ध्यान देने, संरचनातमक सुधारों को आगे बढ़ाने तथा बैंक की आधुनिक व्यवस्था अपनाने की जरूरत है.
उन्होंने शहरी सहकारी बैंकों के लिये राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिये संरचनात्मक बदलाव लाने, लेखांकन प्रक्रियाओं को कम्प्यूटरीकृत बनाने, इस क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं को आर्किषत करने तथा अधिशेष कोष के प्रबंधन के लिये विशेषज्ञों की सेवा लेने जैसे अन्य सुधारों का भी जिक्र किया.

मंत्री ने कहा कि इन सुधारों को लागू करके, शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) को मौजूदा समय में खुद को और अधिक प्रासंगिक बनाना चाहिए. उन्होंने आश्वासन दिया कि सहकारी बैंकों के साथ ‘द्वितीय श्रेणी के नागरिक’ की तरह व्यवहार नहीं किया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘‘अभी 1,534 शहरी सहकारी बैंक, 54 अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक, 35 बहु-राज्यीय सहकारी बैंक, 580 बहु-राज्यीय सहकारी ऋण समितियां, 22 राज्य सहकारी समितियां हैं. हमारी उपस्थिति व्यापक है लेकिन यह असमान है… हमें शहरी सहकारी बैंकों के संतुलित विकास पर ठीक से काम करने की जरूरत है.’’ शाह ने कहा, ‘‘चूंकि सहकारी बैंक ही एकमात्र बैंक हैं जो समाज के निचले तबके को उधार देते हैं, ऐसे में देश के हर शहर में कम से कम एक यूसीबी स्थापित करने की आवश्यकता है.

उन्होंने नेशनल फेडरेशन आॅफ अर्बन कोआॅपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज (एनएएफसीयूबी) को देश में शहरी सहकारी बैंकों के संतुलित विकास पर ध्यान देने का निर्देश दिया. शाह ने कहा, ‘‘संतुलित विकास हमें प्रतिस्पर्धा में बनाये रखने में मदद करेगी. सफल बैंकों को आगे आना चाहिए और इसमें योगदान करना चाहिए.’’ मंत्री ने कहा कि वर्तमान में जमा और कर्ज के संदर्भ में बैंक क्षेत्र में शहरी सहकारी बैंकों की भूमिका नगण्य है.

उन्होंने कहा कि शहरी सहकारी बैंकों और सहकारी ऋण समितियों के विस्तार की बहुत बड़ी गुंजाइश है. इसका कारण देश में 40 प्रतिशत शहरीकरण के साथ शहरी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं. उन्होंने कहा कि यूसीबी देश के समग्र विकास के लिए आवश्यक है क्योंकि यही एकमात्र बैंक हैं जो समाज के निचले तबकों को कर्ज दे सकते हैं.

शाह ने कहा, ‘‘हमें निचले तबके को ऊपर उठाने और उन्हें देश के आर्थिक विकास का हिस्सा बनाने की जरूरत है. यह अकेले सहकारी समितियां कर सकती हैं.’’ उन्होंने कहा कि हम यूसीबी मौजूदा वृद्धि से संतुष्ट नहीं हो सकते. ‘‘कुल जमा में उनकी हिस्सेदारी 3.25 प्रतिशत जबकि कर्ज के मामले में 2.69 प्रतिशत है. हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है.’’ उन्होंने कहा कि शहरी सहकारी बैंकों के विस्तार के लिए संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है. बैंकों के बेहतर संचालन के लिये क्षेत्र का अनुभव रखने वाली अगली पीढ़ी को काम पर रखा जाना चाहिए. साथ ही प्रणाली का आधुनिकीकरण करने, लेखांकन को कम्प्यूटरीकृत बनाने और युवा प्रतिभाओं को आर्किषत करने की जरूरत है.

शाह ने कहा कि इसके अलावा नियुक्ति में पारर्दिशता और अधिशेष कोष को संभालने के लिये विशेषज्ञों की नियुक्ति जरूरी है.
शाह ने कहा कि जहां सहकारी बैंकों को अपनी विश्वसनीयता में सुधार लाने की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी प्रतिबंधों में ढील देनी चाहिए.

शाह ने कहा कि सरकार एक नई नीति तैयार करने के अलावा सहकारी समितियों के लिये एक ‘डेटा बैंक’ और एक अलग विश्वविद्यालय स्थापित कर रही है. शाह ने परिचालन के 100 साल पूरा करने वाले कई शहरी सहकारी बैंकों को सम्मानित भी किया.
कार्यक्रम में सहकारिता राज्य मंत्री बी एल वर्मा, नेशनल फेडरेशन आॅफ अर्बन कोआॅपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज (एनएएफसीयूबी) के अध्यक्ष ज्योंितद्र मेहता और सहकारिता सचिव ज्ञानेश कुमार मौजूद थे.

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